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Kavita Kosh से
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मान लिया है मझधारो से, ठोकर मिली किनारों से
प्यार मिला है पतझारों पतझरों से, नफ़रत मिली बहारों से
पास गया जब फूलों के तो सब ने ही मूँह फेर लिया