भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
कितनी ज्यादा कड़क ठंड है,
करते सी-सी पापा|
दादा कहते शीत लहर है,
कैसे कटे बुढ़ापा।

बरफ पड़ेगी मम्मी कहतीं,
ओढ़ रजाई सोओ|
किसी बात की जिद मत करना,
अब बिलकुल ना रोओ।

किंतु घंटे दो घंटे में,
पापा चाय मंगाते|
बार बार मम्मीजी को ही,
बिस्तर से उठवाते।

दादा कहते गरम पकोड़े,
खाने का मन होता|
नाम पकोड़ों का सुनकर,
किस तरह भला मैं सोता।

दादी कहती पैर दुख रहे,
बेटा पैर दबाओ|
हाथ दबाकर मुन्ने राजा,
ढेर दुआएं पाओ।

शायद बने पकोड़े आगे,
मन में गणित लगाता|
दादी के हाथों पैरों को,
हँसकर खूब दबाता।</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,357
edits