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<poem>
बिल्ली को मौसी कहते हैं ,

और गाय को हम माता|

यही हमारे संस्कार हैं,

पशुओं तक से है नाता|



चिड़ियों को देते हैं दाना,

कौओं को रोटी देते|

प्यासों को पानी देने में,

हमको मज़ा बहुत आता|



यहाँ बाग में फूलों फूलों

हर दिन भँवरा मड़राता,

पेड़ लगा है जो आंगन में

वह भी तो गाना गाता|



देने वाले हाथ हमारे,

हमको देना ही आता|

पर जितना भी हम‌ देते हैं,

दुगना वापस आ जाता|



रोज हमारे घर आंगन में,

स्वर्ण सबेरा बिखराता|

रात चाँदनी जब खिलती है,

तुलसी चौरा मुस्कराता|</poem>
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