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गीत गुणनफल के / रमेश रंजक

No change in size, 07:35, 11 अगस्त 2014
रंग उड़े काग़ज़ी कमल के
खेल कर क्षणीक क्षणिक पराग से
उम्र भर जले चिराग-से
भीतरी अदृश्य आग के
और घने हो गए धुँधलके
</poem>
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