भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार‎
}}
{{KKCatPad}}
<poem>
(राग खमाच)

रे मन हरि-सुमिरन करि लीजै॥-टेक॥
हरि को नाम प्रेम सों जपिये, हरि-रस रसना पीजै।
हरिगुन गा‌इय, सुनिय निरंतर, हरि-चरननि चित दीजै॥
हरि-भगतन की सरन ग्रहन करि, हरिसँग प्रीति करीजै।
हरि-सम हरि-जन समुझि मनहिं मन तिन कौ सेवन कीजै॥
हरि केहि विधि सौं हम सों रीझैं, सो ही प्रश्र करीजै।
हरि-जन हरि-मारग पहिचानै, अनुमति देहिं सो कीजै॥
हरि-हित खा‌इय, पहिरिय हरि-हित, हरि-हित करम करीजै।
हरि-हित हरि-सम सब जग से‌इय, हरि-हित मरिये-जीजै॥
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits