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|रचनाकार=पीयूष दईया
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<poem>
गोचर से छिपा
गिर न जाय
कहीं
पंखुरियां जिसकी
फूल वह
हिलगा पर
खो बैठा
सारा
फूल भी
बचाने की कोशिश में
गोचर (न) रहा
</poem>
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गोचर से छिपा
गिर न जाय
कहीं
पंखुरियां जिसकी
फूल वह
हिलगा पर
खो बैठा
सारा
फूल भी
बचाने की कोशिश में
गोचर (न) रहा
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