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शिक्षा-पद्धति / काका हाथरसी

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=काका हाथरसी|अनुवादक=|संग्रह=काका के व्यंग्य बाण / काका हाथरसी}}{{KKCatKavita}}<poem>बाबू सर्विस ढूँढते, थक गए करके खोज  अपढ श्रमिक को मिल रहे चालीस रुपये रोज़ ॥ चालीस रुपये रोज़, इल्म को कूट रहे हैं ।  ग्रेजुएट जी रेल और बस लूट रहे हैं ॥ पकड़े जाँए तो शासन को देते गाली ।  देख लाजिए शिक्षा-पद्धति की खुशहाली ॥खुशहाली॥</poem>
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