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Kavita Kosh से
|रचनाकार= निदा फ़ाज़ली
}}
ये ज़िन्दगी
जाने कितनी सदियों से
यूँ ही शक्लें
बदल रही है
बदलती शक्लों बदलते जिस्मों में चलता-फिरता ये ज़िन्दगी <br>इक शरारा जाने कितनी सदियों से <br>जो इस घड़ी यूँ ही शक्लें <br>नाम है तुम्हारा बदल रही इसी से सारी चहल-पहल है इसी से रोशन है हर नज़ारा
सितारे तोड़ो या घर बसाओ
क़लम उठाओ या सर झुकाओ
ये खेल होगा नहीं दुबारा
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