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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रवीण काश्यप
|संग्रह=विषदंती वरमाल कालक रति / प्रवीण काश्यप
}}
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<poem>
पैशाची कृष्णविवरमें डूबैत एक बालचन्द्र,
अटृहास करैत अछि तइओ,
अपन मृत्यु केँ दैत अछि चुनौती
अदृष्य कृष्णविवर सभक उदरमे,
हजारो हजार ग्रह-उपग्रह-तारा।
संवेदनशून्य तारकीय मुखमे,
प्रवेश करैत चलि जा रहल अछि,
लाखो लाख जीवन,
मुदा मृत्यु सँ पहिने मरैत नहि अछि।
चलू, ओतहु एक संसार हम बसाबी।
</poem>
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पैशाची कृष्णविवरमें डूबैत एक बालचन्द्र,
अटृहास करैत अछि तइओ,
अपन मृत्यु केँ दैत अछि चुनौती
अदृष्य कृष्णविवर सभक उदरमे,
हजारो हजार ग्रह-उपग्रह-तारा।
संवेदनशून्य तारकीय मुखमे,
प्रवेश करैत चलि जा रहल अछि,
लाखो लाख जीवन,
मुदा मृत्यु सँ पहिने मरैत नहि अछि।
चलू, ओतहु एक संसार हम बसाबी।
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