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लोकराज: दो / निशान्त

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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
उमर री
आधी’क पेड़ी ढळतां ई
छोड़ देंवता राजपाट
पैलड़ा राजा
का
खोस लेंवता
बं रा बेटा
पण आजकल
अै टूटेड़ै गोडांआळा
बोदा कलीर
धिकायां ई बगै
‘लोकराज ’ ।
</poem>
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