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पके-पके क्या आम रसीले, हरे-लाल हैं नीले-पीले। आँधी अगर कभी आ जाती, आम हज़ारों पीट गिराती। इनको लेकर चलो ताल पर, वहाँ खूब पानी से धोकर।सौ-पचास तक खाएँगे हम, आज न भोजन पाएँगे हम।पीले!
'आँधी अगर कभी आ जाती,आम हजारों पीट गिराती! इनको लेकर चलो ताल पर,वहाँ खूब पानी से धोकर! सौ-पचास तक खाएँगे हम,आज न भोजन पाएँगे हम!  ''’सरस्वती’ पत्रिका के हीरक जयंती विशेषांक में प्रकाशित '''
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