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|रचनाकार=नारायणलाल परमार
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<poem>हरी मिरचियाँ जिंदाबाद!
सबके मन को ललचाती,
बिकतीं एक कतार में,
लेने वाले लोग खड़े
इतवारी बाजार में!
नई तुरइयाँ जिंदाबाद!

बड़े मजे से देखो तो-
रोज तराजू पर चढ़तीं,
मच जाती है ठेलम-ठेल!
सँभल न पातीं गिर पड़तीं!
प्यारी छुइयाँ जिंदाबाद!
</poem>
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