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दादा का अखबार / आर.पी. सारस्वत

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<poem>सुबह-सुबह दादा जी चाहें
बस भैया अखबार!

ऐनक ऊपर-नीचे करते,
पूरे पन्ने जमके पढ़ते।

थकते नहीं जरा भी,
ताजा दम दिखते हर बार!

जो भी जहाँ इन्हें मिल जाते,
सबसे पहले खबर सुनाते!

एक खबर के टुकड़े-टुकड़े
करें हजारों बार!

चाय पड़ी ठंडी हो जाती,
चीख-चीख दादी थक जाती।

खबरों में ही सिमट गया है,
दादा का संसार।
</poem>
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