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गड़बड़झाला / देवेंद्रकुमार

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फिर क्या होगा-
गड़बड़-झाला!
 
 
रूप हवा के
 
हवा हुई शैतान!
खिड़की दरवाजे खड़काए,
बेपर कागज खूब उड़ाए,
सारे घर में धूल बिखेरे
अम्माँ है हैरान!
हवा हुई शैतान!
 
हँसते फूलों को दुलराती,
बादल कहाँ-कहाँ ले जाती,
बाँसों से सीटी बजवाए
कैसी इसकी शान!
</poem>
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