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ताक धिना-धिन / दीनदयाल उपाध्याय

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<poem>ताक धिना-धिन, ता-ता धिन-धिन!
किरनें लाईं सोने से दिन!
चिड़िया चहकी
फर-फर फड़की,
हवा बह उठी
हल्की-हल्की,
सरसर सरकी छन-छन, छिन-छिन!
किरनें लाईं सोने से दिन!
धरती जागी
कलियाँ जागीं,
सोई सभी
तितलियाँ जागीं,
फूल खिले बगिया में अनगिन!
किरनें लाईं सोने से दिन!
जगी किताबें
जगे मदरसे,
बड़ी दूर जाना है
घर से,
उठ ले, उठकर तू गिनती गिन!
किरनें लाईं सोने से दिन!
</poem>
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