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{{KKRachna
|रचनाकार='दिग्गज' मुरादाबादी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>धुनी रुई के गोले जैसा
मनमोहक खरगोश,
चाहे जितना इसे छेड़िए
रहता है खामोश।
मन करता है इसे गोद में
लेकर खूब दुलारें,
अपने अलबम में रखने को
इसका चित्र उतारें।
</poem>
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<poem>धुनी रुई के गोले जैसा
मनमोहक खरगोश,
चाहे जितना इसे छेड़िए
रहता है खामोश।
मन करता है इसे गोद में
लेकर खूब दुलारें,
अपने अलबम में रखने को
इसका चित्र उतारें।
</poem>