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{{KKRachna
|रचनाकार=अनुपमा पाठक
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|संग्रह=
}}
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<poem>सजल आँखों से जलाया
देहरी पर एक दीप...
मन का आँगन
लिया पहले ही था लीप...
बड़े स्नेह से बुला रहे हैं
ज़िन्दगी ! आओ न समीप...
हम भी तुम तक ही तो आ रहे हैं
चुनते हुए भावों के मोती सीप... !! </poem>
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देहरी पर एक दीप...
मन का आँगन
लिया पहले ही था लीप...
बड़े स्नेह से बुला रहे हैं
ज़िन्दगी ! आओ न समीप...
हम भी तुम तक ही तो आ रहे हैं
चुनते हुए भावों के मोती सीप... !! </poem>