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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>उजियाला पूरा है
या गहरा अँधियारा
कुछ भी तो पता नहीं
पोत लिये आये थे
सागर में
बहुत दूर निकल गये
मुट्ठी में पकड़े
हम सीपी-क्षण
मोती की बस्ती में फिसल गये
घटता यह जल है
या उठता है ज्वार
कुछ भी तो पता नहीं
बाँधते रहे लंगर
पाँव-तले
खिसक रही रेती से
अपनी ही आहट से
डरे हुए
जुड़े रहे घोंघों की खेती से
कितना कुछ दे बैठे
या कितना है उधार
कुछ भी तो पता नहीं
</poem>
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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
|अनुवादक=
|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
}}
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<poem>उजियाला पूरा है
या गहरा अँधियारा
कुछ भी तो पता नहीं
पोत लिये आये थे
सागर में
बहुत दूर निकल गये
मुट्ठी में पकड़े
हम सीपी-क्षण
मोती की बस्ती में फिसल गये
घटता यह जल है
या उठता है ज्वार
कुछ भी तो पता नहीं
बाँधते रहे लंगर
पाँव-तले
खिसक रही रेती से
अपनी ही आहट से
डरे हुए
जुड़े रहे घोंघों की खेती से
कितना कुछ दे बैठे
या कितना है उधार
कुछ भी तो पता नहीं
</poem>