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|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
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<poem>आँधी में-पानी में
शामिल हैं रोज़ की कहानी में

टूटे पर-नीड़ लिए
धूप रहे गिनते
दिन बीते
मछुआरे जालों को बिनते

राख हुए हैं भरी जवानी में

बाढ़ हुई लहरों के साथ
रहे थकते
रेतीले घाटों पर
सिर रहे पटकते

छोड़ गये सीपियाँ निशानी में

जड़ हुई जटाओं में
रोज़ रहे बँटते
बरगद के नीचे के
ठाँव हुए घटते

पतझर के साथ छेड़खानी में
</poem>
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