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{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
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<poem>एक दिन तो ऐसा आ ही जाता है
आप कहते हैं- मोगरा !
और आपके गिर्द
समूचा बागीचा आ जाता है
तमाम खिले हुए
मोगरों की खुशबुओं के साथ
आपको अब
किसी की भी प्रतीक्षा नहीं है
न ही कोई आपकी राह देख रहा है
यह एकाकार होना है
स्पष्टत:
नहीं समझे !
देखो !
कहीं किसी ने कहा है - मोगरा !
और तुम !
महक उट्ठे हो ।
</poem>
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<poem>एक दिन तो ऐसा आ ही जाता है
आप कहते हैं- मोगरा !
और आपके गिर्द
समूचा बागीचा आ जाता है
तमाम खिले हुए
मोगरों की खुशबुओं के साथ
आपको अब
किसी की भी प्रतीक्षा नहीं है
न ही कोई आपकी राह देख रहा है
यह एकाकार होना है
स्पष्टत:
नहीं समझे !
देखो !
कहीं किसी ने कहा है - मोगरा !
और तुम !
महक उट्ठे हो ।
</poem>