भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राग तेलंग |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>काले...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>काले पैंथर तक से लड़ा उसके लिए मैं
लहूलुहान हालत में
अब तक खड़ा हूं
बीच जंगल में
उसका इंतजार करते
हां ! चाकू पर से
मेरी पकड़ कम नहीं हुई है और
गाहे-बगाहे मैं
उसकी धार पर हाथ फेरता रहता हूं
उसके बारे में सोचते हुए
उसके गिर्द
अब शहरी लोगों का जमघट है और
यह भी साफ है कि मैं
उसकी सोच में भी नहीं बचा
कंक्रीट के जंगल के लोगो !
यहां से कभी मत गुजरना
मैं प्रवेश कर रहा हूं इस वक्त
मृत पड़ी काले पैंथर की देह में
सिर्फ कुछ ही क्षणों में
एक काले पैंथर के झपट्टे के लिए
तैयार हो जाओ।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>काले पैंथर तक से लड़ा उसके लिए मैं
लहूलुहान हालत में
अब तक खड़ा हूं
बीच जंगल में
उसका इंतजार करते
हां ! चाकू पर से
मेरी पकड़ कम नहीं हुई है और
गाहे-बगाहे मैं
उसकी धार पर हाथ फेरता रहता हूं
उसके बारे में सोचते हुए
उसके गिर्द
अब शहरी लोगों का जमघट है और
यह भी साफ है कि मैं
उसकी सोच में भी नहीं बचा
कंक्रीट के जंगल के लोगो !
यहां से कभी मत गुजरना
मैं प्रवेश कर रहा हूं इस वक्त
मृत पड़ी काले पैंथर की देह में
सिर्फ कुछ ही क्षणों में
एक काले पैंथर के झपट्टे के लिए
तैयार हो जाओ।
</poem>