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{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|संग्रह= मंडाण / नीरज दइया
}}
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<poem>
दुनिया रै
हरेक गांव में
पक्कायत लाधैला आपनैं
गाभा सीड़तो दरजी
बाळ काटतो नाई
अर टापरा संवारतो कारीगर।
दुनिया रै
हरेक घर में
आप जोय सको
काच, कांगसियो
अर तेल-फुलेल।
फूठरापै सारू आफळ
मानखै रो
जुगां-जूनो सुभाव है
पण कुण है वो
जको जद-कद
धूड़, धुंवै अर लाय सूं
बदरंग कर नाखै
मिनखपणै रो उणियारो।
</poem>
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दुनिया रै
हरेक गांव में
पक्कायत लाधैला आपनैं
गाभा सीड़तो दरजी
बाळ काटतो नाई
अर टापरा संवारतो कारीगर।
दुनिया रै
हरेक घर में
आप जोय सको
काच, कांगसियो
अर तेल-फुलेल।
फूठरापै सारू आफळ
मानखै रो
जुगां-जूनो सुभाव है
पण कुण है वो
जको जद-कद
धूड़, धुंवै अर लाय सूं
बदरंग कर नाखै
मिनखपणै रो उणियारो।
</poem>