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21:48, 22 मई 2016 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=धीरेन्द्र
|संग्रह=करूणा भरल ई गीत हम्मर / धीरेन्द्र
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<poem>
स्वप्न देखी ओना नखलिस्तानकेर हम
जान वा अनजानमे मरूभूमि केर बासी बनल छी।
क्षितिज धरि नहि कतहु छाहरि अछि देखाइत,
अम्बु विन्दुक गप्प तँ अछि करब व्यर्थें !
एम्हर देखी, ओम्हर देखी, हुहुआइत खाली शून्य देखी,
जलक भ्रम यदि भेल कत्तहु, देखल मात्र मरीचका छल।
एहन परिसर विकट हम्मर, आत्मवल टा एक सम्बल।
मित्र ! तइयो ससरि रहले, हमर कफला मन्दगतिसँ।
प्रबल हो यदि भाव धारा, व्यर्थ ताकब तखनि यतिकें।
अनति कालेमे अबै अछि, सिमूम केर बस झोंक खाली।
पसरि रहले हमर मगमे विघ्न-वाधा केर जाली।
दस्यु-वृन्दक कमी नहि अछि, जेम्हर ताकी वैह भेटय।
मुदा ताड़क गाछ सन हम एहि पाँतरमे तनल छी।
जान वा अनजानमे मरूभूमि केर बासी बनल छी।
</poem>