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जैसे नन्द नीन्द में चल रहे बुरे सपने के बाद एक ज़ोर की चिहुँक और ज़ारी रहना नींद का,
जैसे चलते-चलते अचानक पैरों से आ लगे पत्थर से छलछला आया लाल रक्त और ज़ारी रहे सफ़र,
जैसे मिल जाना तुम्हारा यूँ ही ताउम्र के लिए और नहीं मिलना एक पल का भी,
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