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क्यों जुबां ज़ुबाँ पर मेरी आ गयी हैं प्रिये
थीं छुपानी जो बातें, कही हैं प्रिये
सब की नज़रें उठी की उठी हैं प्रिये
ग़म नहीं दर खुले न ना खुले अब कोई
शुक्र है, खिड़कियाँ तो खुली हैं प्रिये