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|रचनाकार=विजयदान देथा 'बिज्‍जी'
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|संग्रह=ऊषा / विजयदान देथा 'बिज्‍जी'
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<poem>
ऊषे!
मैं तुमको न मिटने दूँगा

मेरे अन्तर से निकाला प्रेम-श्वास
बनकर वाष्प
बादल का धर अमिट रूप
कामी दिनकर को छा लेगा!

तुम्हारी लाली को
आरक्त बना रखने
दे अपने शोणित का प्रत्येक बिन्दु
कर विलीन समस्त जीवन अपना
तुम्हारी यौवन को
चिर आक्षय रखने
अपने यौवन का क्षय कर दूँगा!

ऊषे!
मैं तुमको न मिटने दूँगा!

मेरे अन्तर से निकला प्रेम-श्वास
बनकर वाष्प
बादल का धर अमिट रूप
कामी दिनकर को छा लेगा!
</poem>