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अनिँदो रात / रमेश क्षितिज

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आफूलाई भुलिरहेँ बिर्सनेलाई सम्झिरहेँ
के के सोचेँ रातभरि बिउँझिरहेँ–बिउँझिरहेँ !
कति थिए घाउहरू एकान्तमा गनिरहेँ
गुन्गुनाएँ आफ्नो गीत आफैँले नै सुनिरहेँ
 </poem>