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किरदार / डी. एम. मिश्र

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खुले आसमान के नीचे
सन्तुष्ट है और खुश
 
एक वह है
जेा ड्रामा करना जानता है
और झूठ का कारोबार कर लेता है
दूसरा वह है
जो न बयानबाजी जानता है न भाषणबाजी
हाथ जोड़ लेता है तो हुनर काम करता है
खामोश रहता है तो मौन
 
सबका अलग किरदार है
और अलग मंच
पर, हर किरदार की परख
उसके सत्य से होती है
</poem>
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