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व्यर्थ आज बिचरी म ननीका, जालका बिच परी संगिनीका ।
बाँधियें इज्जत भो बरबाद, मेटिदैन अब यो अपवाद ।।१०।।
 
यो जुलुम सहन शक्तिन सत्ते, भाग्दछू अब म बस्तिन सत्ते ।
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