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गाँव मा / अरुण कुमार निगम

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<Poem>
दया हे मया हे, सगा! गाँव मा
चले आ कभू, लीम के छाँव मा।

हवै जिंदगी का? इहाँ जान ले
सरग आय सिरतोन, परमान ले।

सचाई चघे हे, सबो नार मा
खिले फूल सुख के, इहाँ डार मा।

सुगंधित हवा के चिटिक ले मजा
चिटिक झूम के आज माँदर बजा।

मजा आज ले ले न, चौपाल के
भुला दे सबो दु:ख, जंजाल के।

दया हे मया हे, सगा! गाँव मा
चले आ कभू, लीम के छाँव मा।
</poem>
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