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{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
एक दिन
अंधकार से नहीं उतना घबराओगे
जितना अपने आसपास के
उजाले से डर जाओगे
हां…
डर जाओगे
हर उस चिराग से
जो सिर्फ़ उजाले में
जल रहा होगा…
अंधेरे से तो फिर भी
बखूबी निकल जाओगे
मारे वहां जाओगे
जहां रौशनी बहुत होगी
चकाचौंध-सी…
उनकी आत्मा से ही
रौशन है ये संगमरमरी इलाका
जो मारे गए थे
तुमसे भी पहले…बहुत पहले…
बहुत सम्भाल के रखना
अपने कदम भी
कि तुम्हारे पुरखे ही यहां
चिरागों में जल रहे होंगे…
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|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
एक दिन
अंधकार से नहीं उतना घबराओगे
जितना अपने आसपास के
उजाले से डर जाओगे
हां…
डर जाओगे
हर उस चिराग से
जो सिर्फ़ उजाले में
जल रहा होगा…
अंधेरे से तो फिर भी
बखूबी निकल जाओगे
मारे वहां जाओगे
जहां रौशनी बहुत होगी
चकाचौंध-सी…
उनकी आत्मा से ही
रौशन है ये संगमरमरी इलाका
जो मारे गए थे
तुमसे भी पहले…बहुत पहले…
बहुत सम्भाल के रखना
अपने कदम भी
कि तुम्हारे पुरखे ही यहां
चिरागों में जल रहे होंगे…