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Kavita Kosh से
वे तुम्हें ऐसे नहीं मारते...
वे तुम्हें, तुम्हारी मां
कोई फर्क नहीं करते
वे उन सब के साथ
नया कोई शिल्प
बुखार में तपती
नया कोई निर्वीर्य संस्कार
और इस तरह
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