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हैं फूल बन कर बिछ सको यदि तुम नहींऔर काँटे मुझको दोनों समानतुम फूल बनो या शूल बन कर भी न फैलो राह मेंचल रहा चलने मुझे दो।परवाह नहीं।
इसलिये धूल-शृंगार मुझे दोनों समान
तुम धूल या कि शृंगार बनो परवाह नहीं॥4॥
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