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मेरी आँखों के नीर तुम्हे तुम्हें
बहने का है अधिकार नहीं।
जो तुमको निधि कहकर रोके
विचलित उर-अम्बुधि-लहरों में
दुख से अकुलाए अधरों में
है दारुण-दुखद पुकार बहुत।
करुणा खोएगी जीवन में।
जिस उर में प्यार बसा प्रिय का
अब भरो वहाँ अंगार नहीं।
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