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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
तपै तावड़ै
डील में उठै गांठ
पण पग पाछा नीं देवै
मुरमोबी बांठ।
लरड़ी-छाळी
चूल्हां नेड़ी करै
मिनख डाळी-डाळी
तकै आभौ बधै ओरां मिस
जड्यां भरवै
सरणांगत दीवळा
नी तोड़ै मून
टोरै जूण।
मुरधर सूं
पाळो हेत
करै निछरावळ
परहित डील तापै रेत
पण रै’वै निरमळ
पाळै प्रीत
खोलै गांठ
आंट री नीं दरकार
छांट री-मेह री
रै‘वै फगत
नेह री।
</poem>
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