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झुळसतौ रैवूं / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
झुळसतौ रैवूं
बां सबदा री आग में
मा कैयो
थारै बाप नै जींवतां ई
मार दियौ
घरवाळां।
बां जमीन दिखै
म्हारो धणियाप नी है
उण जमीन माथै
आज।

</poem>
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