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दिवलो : अेक / रचना शेखावत

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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
दिवलै री बाट में
जठै ताईं है लौ
बठै ताईं है
ऊभो होय‘र
अंधारै सूं जूझण री खिमता
थांरी ओळ्यूं बा इज लौ है
म्हैं ऊभी बाट ज्यूं बळती
अर जलम म्हारो दिवलो सो।
</poem>
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