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|संग्रह=थार-सप्तक-3 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
मा देवै जलम
जी सा पाळै
मा बिरमा म्हारी
जी सा बिसनूं
म्हारो लेखो
म्हारो करयोड़ो करम
म्हारो संकळप महेस होय‘र
समूळा पडपच सुंवारै
देखो
बेमाता री गिणत में
मा पै‘ली है
आओ, आपां इज
पै‘ली राखां मा नै
आओ बचावां बेटी नै।

</poem>
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