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धरती मा / भंवर कसाना

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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
नीं बणै
नीं बणै, धरती मा
बठै
जठै री नारी
भोग अर वासना रै
चस्मै सूं देखी जावै
अर जठै रा टाबर
ममता रो पाठ
आया रै पालणै सीखै
धरती तो बठैई मा है
जठै
कोयी रामायणी सीख
ममता रो गास्यो
देती कैवे-
‘जननी जन्मभूमिष्च
स्वर्गादपि गरीयसी’।


</poem>
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