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|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
भूखै नै
राम नीं मिलै
अर
मरयां बिन्यां
अराम नीं मिलै
आं मोटयारां रो
खून उबाळो खा जावै
जे हां हाथां नै
काम नीं मिलै।

</poem>
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