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|रचनाकार=अशोक परिहार 'उदय'
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|संग्रह=थार-सप्तक-7 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

जिण छातां में
होंवता बरंगा-सैथीर
उणां में होंवता कदैई
म्हारा रैन-बसेरा
बां इज छातां में
होग्यो कब्जो
चीकणीं टाईलां रो
म्हे पंछीड़ा फिरां
डबकता अब
थूं तो भाई
खुद री ई सोची
म्हारी थांरै भेजै
क्यूं नीं आई?
</poem>
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