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|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
तै है
अेक दिन थूं जावैला
म्हैं ई जावूंला
फेरूं
क्यूं घबरावै
पाप नै क्यूं बधावै
दुनिया-भरा रो समान
कांधे अर माथै पर
क्यूं उठावै
कीं हळको रै
नीं थनै भार
नीं बापड़ी मौत नै मार
जिंदगाणी रो सफर भी
इण सूं रैवै सौरो ।
</poem>
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