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टाबर - 9 / दीनदयाल शर्मा

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|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
थानै
बैम है
कै थे टाबरां नै
सुधारौ
अर बानै
संस्कारित करौ

खुद नै देखौ
खुद रै भीतर

टाबर
सुधर ज्यासी
आपीआप।
</poem>
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