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|संग्रह=रीत अर प्रीत / दीनदयाल शर्मा
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<poem>
मेरै घर रै सामणै
बिजळी रै खंबै माथै
आलणौ बणाय' र
रैवै
अेक चिड़ी आपरै
चूजां साथै

जकी सूरज उगण सूं
पैली
उठ'र
उडज्यै असमान में
अर
निजर राखै
धरती माथै

चुग्गौ खाय'र
चुग्गौ लेय'र आवै
आपरै चूजां सारू

जिका आंख्यां मीच्यां
चूंच खोल्यां
अर पांख फैलायां
बैठ्या करै
आपरी मा री अडीक।
</poem>
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