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04:31, 29 जून 2017
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धूसर भूमिजब कभी उदास होता है मौसमसूख कर पीली पड़ चुकी घासखुली हवायें बनाने लगती हैं कुछ दूरीक्वार की युवा धूप में सिहरन भरी हवाओं का स्पर्शलुप्तप्राय घास से चहक उठी चंचल हो उठते हैंवृक्षों के पीले पत्तेउम्मीद ढलते दिन की नन्हीं कोंपलेकार्तिक माह भोर की निस्तब्ध बेला लम्बी परछाईयों मेंओस की नन्हीं मोतियों ठहरे से कर श्रृंगार नन्हीं कोपलें चहक उठी हैंदूर-दूर तक विस्तृत धान के खेतों आकाश में चुपचाप लहलहा उठी हैं हरी बालियाँ महक-महक उठा निकल आता है हवाओं का वजूदनीला चाँदकोहरे का झीना आवरणअसमर्थ हो रहा है सृश्टि के सौन्दर्य को ढँकने इस बेरंग मौसम मेंगुनगुनी धूप वृक्षों के संसर्ग सेसुनहरी होने लगी हैं धान नीचे पीले पत्तों की बालियाँकालीन परपकने लगे हैं स्वप्नधान की गाँछों भरे खलिहान फुदकती है एक चिड़ियाअगहन चाँद के सर्द दिनों मेगरमाहट होने... पत्तों के टूटने से भरने लगे हैंपूर्वनये चावल की भीनी महक से लहक-महक उठी है गाँव की हवायेंमैं उतार लेती हूँ चाँद को जल भरे कटोरे मेंधान सूखे पत्तों के सुनहरे दानों से संगीत में भर गयी हैं डेहरियाँस्वर्णिम नवगाछ की पुआल बन जायेंगी गर्म बिछौनेपूस की ठंड रातों में / इन दिनों। जीवंत होने लगा है सर्द चाँद।
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