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भींत / दुष्यन्त जोशी

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|संग्रह=अेकर आज्या रै चाँद / दुष्यन्त जोशी
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<poem>
आपां सगळा
'इगो' सारू लड़ां
अर अेक दूजै रै बिचाळै
खींचद्यां भींत

जकी
बधै रातोरात
मैं'गाई ज्यूं

पछै
भळै 'इगो' टकरावै
तद
भींत
कीं' और बध ज्यावै।
</poem>
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