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वसीयत / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
जिण ठौड़
चुगूं म्हैं स्क्रेप
चांदमारी इलाकै में
म्हारै कांई-किसी हुयां पछै
उण ठौड़
चुगैला म्हारो लाडेसर।

ठेकेदार जी!
आ वसीयत है
अणलिखी
अेक मजूर री
जिण नैं मानणो का नीं मानणो
आपरै हाथां है।
</poem>
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