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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
बाप रै
हुकम सूं मिळ्योड़ो
राम नैं देसूंटो
चवदै बरसां रो
जको दियाळी नैं पूरो हुग्यो।

पापी पेट सारू
म्हारो देसूंटो
हुवैला कद पूरो?
</poem>
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