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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
आज मौसम ने शरारत फिर किया।
फिर बहाने से किसी ने छू लिया।
आपके खंज़र को भी सजदा किया,
नोक पर सीधे कलेजा रख दिया।
मुस्कराकर हाल पूछा आपने,
ठीक है, मैंने भी हँसकर कह दिया।
हुस्न वालों की गली है सोचकर,
पत्थरों के डर से सर को ढँक लिया।
</poem>
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
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आज मौसम ने शरारत फिर किया।
फिर बहाने से किसी ने छू लिया।
आपके खंज़र को भी सजदा किया,
नोक पर सीधे कलेजा रख दिया।
मुस्कराकर हाल पूछा आपने,
ठीक है, मैंने भी हँसकर कह दिया।
हुस्न वालों की गली है सोचकर,
पत्थरों के डर से सर को ढँक लिया।
</poem>