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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हमने गर आसमाँ उठाया है।
जगहें सबके लिए बनाया है।
सूर्इ्र ने कब कहाँ सिलाई की,
धागे को रास्ता दिखाया है।
कोई तालाब बन गया होगा,
कोठी ऊँची अगर उठाया है।
आँखें रखने का है गिला हमको,
अंधों ने आइना दिखाया है।
बेसुध हो लोग सो गये जब-जब,
हमने आवाज़ दे जगाया है।
</poem>
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|संग्रह=आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र
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हमने गर आसमाँ उठाया है।
जगहें सबके लिए बनाया है।
सूर्इ्र ने कब कहाँ सिलाई की,
धागे को रास्ता दिखाया है।
कोई तालाब बन गया होगा,
कोठी ऊँची अगर उठाया है।
आँखें रखने का है गिला हमको,
अंधों ने आइना दिखाया है।
बेसुध हो लोग सो गये जब-जब,
हमने आवाज़ दे जगाया है।
</poem>